
MBBS : एमबीबीएस करने के लिए बांग्लादेश क्यों जाते हैं भारतीय छात्र, डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए क्यों है पसंदीदा जगह
बांग्लादेश में हिंसा और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच पिछले कुछ हफ्तों में (1 अगस्त तक) 7,200 से अधिक भारतीय छात्र भारत लौटे हैं। बांग्लादेश में लगभग 19,000 भारतीय नागरिक रह रहे हैं, जिनमें 9,000 से अधिक भारतीय छात्र हैं। 9000 में बहुत से छात्र वहां से एमबीबीएस कर रहे हैं। लेकिन आखिर क्यों हर साल भारतीय छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए इस पड़ोसी मुल्क का रुख करते हैं। भारत में हर साल करीब 25 लाख स्टूडेंट्स मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट देते हैं जिसमें से करीब 13 लाख पास हो पाते हैं। लेकिन नीट क्वालिफाई करने वाले इन 13 लाख स्टूडेंट्स के लिए देश में एमबीबीएस की सिर्फ 1.10 लाख सीटें ही हैं। यह स्थिति हर साल देखने को मिलती है। नीट पास विद्यार्थियों में से अच्छी रैंक पाने वालों को ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सस्ती एमबीबीएस की सीट मिल पाएगी। देश में एमबीबीएस की बेहद कम सीटें और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की भारी भरकम फीस के चलते डॉक्टर बनने का ख्वाब संजोए हजारों स्टूडेंट्स विदेश से एमबीबीएस करने की ऑप्शन चुनते हैं। बहुत से तो ऐसे होते हैं जिन्हें देश में ही प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस सीट मिल रही होती है लेकिन उसकी भारी भरकम फीस के चलते उन्हें बांग्लादेश, यूक्रेन, रूस जैसे देशों का रुख करना पड़ता है। ये ऐसे देश हैं जहां एमबीबीएस का खर्च भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों से काफी सस्ता पड़ता है। भारत की तुलना में इन देशों में कम नीट मार्क्स से दाखिला लेना संभव है। हालांकि विदेश से एमबीबीएस करने के लिए नीट पास करना अनिवार्य होता है। नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) से पात्रता प्रमाण पत्र भी प्राप्त करना होता है। अगर विद्यार्थी ऐसा नहीं करता है तो वह एफएमजीई परीक्षा नहीं दे सकेगा। विदेश से एमबीबीएस करके आए विद्यार्थियों को भारत में डॉक्टरी का लाइसेंस लेने के लिए एफएमजीई परीक्षा देनी होती है। एमबीबीएस के लिए बांग्लादेश क्यों है पसंदीदा जगहबिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार देश में मेडिकल कॉलेज की लगभग 25 फीसदी सीटें अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए आरक्षित हैं। यह प्रावधान भारतीय छात्रों को पर्याप्त अवसर देता है। इसके अलावा बांग्लादेश में मेडिकल एजुकेशन भारत की तुलना में काफी सस्ती है। किफायती मेडिकल एजुकेशन पर लीवरेज.बिज के संस्थापक और सीईओ अक्षय चतुर्वेदी ने कहा, 'भारत के छात्र मुख्य रूप से मेडिकल की पढ़ाई के लिए बांग्लादेश जाते हैं क्योंकि वहां पढ़ना भारत के निजी कॉलेजों की तुलना में काफी सस्ता है और अधिकांश संस्थान डब्ल्यूएचओ और एमसीआई से मान्यता प्राप्त हैं।"NEET में अच्छे अंक लाकर भी सदमे में ये छात्र, नियम बदलने से अपने ही राज्य में नहीं ले पा रहे MBBS में एडमिशनडॉक्टर बनने का खर्च : भारत बनाम बांग्लादेशभारत में सरकारी मेडिकल कॉलेज आमतौर पर 5,000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष तक की मामूली फीस लेते हैं। जबकि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज अपनी प्रतिष्ठा और सुविधाओं के आधार पर 12 लाख रुपये से 25 लाख रुपये प्रति वर्ष के बीच फीस वसूलते हैं। इसके उलट बांग्लादेश में एमबीबीएस करने की कुल लागत लगभग 25 लाख रुपये है। सस्ती मेडिकल शिक्षा के चलते डॉक्टर बनना चाह रहे छात्रों के लिए यह आकर्षक विकल्प रहा है। भारत में 600 से अधिक मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस करवाते हैं फिर भी प्रतिस्पर्धा कड़ी बनी हुई है। 2024 में, 23 लाख से अधिक छात्र नीट यूजी परीक्षा के लिए उपस्थित हुए, जिनमें से अधिकांश 50 हजार के आसपास सरकारी मेडिकल कॉलेज सीटों पर नजर गड़ाए हुए हैं। सरकारी संस्थान, जो अपनी रियायती फीस के लिए जाने जाते हैं, में 386 कॉलेजों में केवल 55,095 सीटें हैं, जिससे प्रत्येक सीट के लिए लगभग 42 छात्र दावेदारी ठोकते हैं। 320 निजी मेडिकल कॉलेज में 53,625 सीटें हैं, लेकिन उनकी आसमान छूती फीस उन्हें कई योग्य व पात्र छात्रों की पहुंच से दूर कर देती है। रूस, किर्गिस्तान और फिलीपींस जैसे देश भी मेडिकल एजुकेशन के लिए किफायती विकल्प प्रदान करते हैं। 15वें वित्त आयोग ने विदेश में चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में वृद्धि की सूचना दी है, जो 2015 में 3,438 से बढ़कर 2019 में 12,321 हो गई है। भारत का राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग बांग्लादेश में सात विश्वविद्यालयों को मान्यता देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी उनके गुणवत्ता मानकों के लिए उन्हें मान्यता देता है।
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